पुरुष सूक्त: महत्ता, महत्व, और इतिहास

पुरुष सूक्त: वैदिक साहित्य का महत्वपूर्ण अंग
पुरुष सूक्त, ऋग्वेद के 10वें मंडल का एक अत्यंत महत्वपूर्ण सूक्त है। इसमें परमात्मा या ‘पुरुष’ के विराट स्वरूप का वर्णन किया गया है, जो संपूर्ण ब्रह्मांड का सृजन, पोषण और पालन करता है। पुरुष सूक्त का पाठ देवी-देवताओं की पूजा, यज्ञ, और विशेष धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता है। यह सूक्त उस परम पुरुष (परमात्मा) के अनंत रूपों का वर्णन करता है, जिसने सृष्टि का निर्माण किया और जो सर्वत्र व्याप्त है।
पुरुष सूक्त का महत्व
सर्वव्यापकता का प्रतीक: पुरुष सूक्त हमें यह सिखाता है कि परमात्मा हर स्थान, हर जीव और हर वस्तु में विद्यमान है। वह विश्व के प्रत्येक कण में व्याप्त है, जिससे सृष्टि का निर्माण, पालन और विनाश होता है। धर्म और आध्यात्मिकता का आधार: इस सूक्त के माध्यम से व्यक्ति को यह समझने का प्रयास किया जाता है कि वह केवल इस संसार का हिस्सा नहीं, बल्कि एक विराट ब्रह्मांडीय सत्य का अंश है। यज्ञ और पूजा में महत्व: पुरुष सूक्त का पाठ यज्ञ, पूजा और विशेष अनुष्ठानों में किया जाता है ताकि परम पुरुष की कृपा प्राप्त हो सके और समाज में समृद्धि, शांति और धर्म की स्थापना हो। आध्यात्मिक जागरण: पुरुष सूक्त का पाठ व्यक्ति के भीतर आध्यात्मिक शक्ति का संचार करता है और उसे ईश्वर की व्यापकता और उसकी महिमा का अनुभव कराता है।
पुरुष सूक्त का इतिहास
पुरुष सूक्त की उत्पत्ति वैदिक काल में हुई। यह ऋग्वेद के 10वें मंडल का 90वां सूक्त है, जो ऋषियों द्वारा ‘पुरुष’ या परमात्मा की स्तुति के रूप में रचा गया था। इसके श्लोकों में ईश्वर के विराट स्वरूप का वर्णन किया गया है, जिसके अंग-प्रत्यंग से ही यह सम्पूर्ण सृष्टि बनी है।
प्राचीन काल से ही इसका पाठ धार्मिक अनुष्ठानों और यज्ञों में प्रमुखता से किया जाता रहा है। यह सूक्त वेदांत दर्शन का भी एक महत्वपूर्ण आधार है, क्योंकि इसमें ‘पुरुष’ की व्यापकता और उसकी सर्वशक्तिमानता को स्पष्ट रूप से वर्णित किया गया है। उपनिषदों और पुराणों में भी पुरुष सूक्त की महत्ता का वर्णन मिलता है।
पुरुष सूक्त के श्लोक
१. सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात्। स भूमिṁ विश्वतो वृत्वा अत्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम्॥
२. पुरुष एवेदं सर्वं यद्भूतं यच्च भव्यम्। उतामृतत्वस्येशानः यदन्नेनातिरोहति॥
३. एतावानस्य महिमा अतो ज्यायांश्च पुरुषः। पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि॥
४. त्रिपादूर्ध्व उदैत्पुरुषः पादोऽस्येहाभवात्पुनः। ततो विश्वं व्यक्रामत्साशनानशने अभि॥
पुरुष सूक्त का आध्यात्मिक महत्व
अद्वैत दर्शन: पुरुष सूक्त में वर्णित पुरुष को ब्रह्मांडीय आत्मा या परम पुरुष माना गया है, जो अद्वैत वेदांत दर्शन का मूल आधार है। यह सूक्त व्यक्ति को ब्रह्मांड के साथ एकात्मकता का अनुभव कराता है।
समाज और सृष्टि की उत्पत्ति: पुरुष सूक्त में वर्णित है कि किस प्रकार पुरुष के अंगों से संसार की उत्पत्ति हुई। उदाहरण के लिए, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, और शूद्र पुरुष के मुख, भुजाओं, जांघों, और पैरों से उत्पन्न हुए। इससे सामाजिक व्यवस्था और धर्म की व्याख्या भी होती है।
यज्ञ का प्रतीक: पुरुष सूक्त में यज्ञ को भी महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। यज्ञ के माध्यम से ब्रह्मांड का निर्माण हुआ और यज्ञ द्वारा ही इसका पालन होता है। इस प्रकार यज्ञ को जीवन का आधार माना गया है।
निष्कर्ष
पुरुष सूक्त न केवल वैदिक साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, बल्कि यह भारतीय धर्म और संस्कृति के मूल आधारों में से एक है। इसका पाठ व्यक्ति को ब्रह्मांड के साथ एकात्मता का अनुभव कराता है और उसे यह समझने में मदद करता है कि वह एक अनंत सत्य का अंश है। इसका धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यधिक है, और यह सूक्त हमें ईश्वर की व्यापकता और उसके विराट स्वरूप की अनुभूति कराता है।