प्रतापगढ़ की लड़ाई: कैसे छत्रपति शिवाजी महाराज ने अफजल खान को चतुराई से हराया

साल 1659, दक्कन की धरती पर एक ऐतिहासिक युद्ध लड़ा गया जिसने भारतीय इतिहास की दिशा ही बदल दी—प्रतापगढ़ की लड़ाई। यह सिर्फ तलवारों और सेनाओं की भिड़ंत नहीं थी, बल्कि एक असाधारण रणनीति, कूटनीति और साहस का अद्भुत प्रदर्शन था। इस युद्ध में एक ओर थे मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज, और दूसरी ओर आदिलशाही सल्तनत के भयंकर सेनापति अफजल खान। आइए जानते हैं कैसे शिवाजी महाराज ने अपने चतुर दिमाग और निर्भीक नेतृत्व से इस प्रचंड शत्रु को हराया।
प्रारंभ: अफजल खान का आतंक
आदिलशाही सल्तनत, मराठों के बढ़ते प्रभाव को कुचलने के लिए आतुर थी। उसने अपने सबसे क्रूर और शक्तिशाली योद्धा अफजल खान को चुना।
- ऊंचाई: 7.3 फीट
- पद: वाई का सूबेदार
- सेना: लगभग 75,000 सैनिक
- आदेश: बदी बेगम साहिबा द्वारा दिए गए—शिवाजी को समाप्त करना
अफजल खान ने भय और बर्बरता का मार्ग चुना।
- गांवों को जलाया
- निर्दोषों की हत्या की
- तुलजा भवानी मंदिर जैसे पवित्र स्थलों का अपमान किया
उनका उद्देश्य स्पष्ट था—शिवाजी का मनोबल तोड़कर उन्हें आत्मसमर्पण के लिए मजबूर करना।
शिवाजी की चतुर कूटनीति
शिवाजी महाराज ने तलवार से पहले दिमाग का इस्तेमाल किया। उन्होंने अपने विश्वस्त कूटनीतिज्ञ पंताजी गोपीनाथ को खान से संवाद करने भेजा।
- संदेशों में शिवाजी को कमजोर, भयभीत और आत्मसमर्पण को तैयार दर्शाया गया
- अफजल खान इस मनोवैज्ञानिक खेल में फँस गया
- उसने एक व्यक्तिगत मुलाकात के लिए हामी भर दी, यह सोचे बिना कि वह खुद एक जाल में जा रहा है
प्रतापगढ़ में मुलाकात: एक घातक आलिंगन
मुलाकात प्रतापगढ़ किले की तलहटी में एक विशेष तंबू में तय हुई।
- शर्त: केवल सीमित अंगरक्षक
- शिवाजी महाराज ने बुलेटप्रूफ कवच, धातु का हेडगियर, और दो छिपे हथियार—वाघ नख और बिछुआ खंजर पहने
- साथ थे उनके वफादार अंगरक्षक जीवा महाले, जिन्हें सय्यद बांदा की गतिविधियों पर नजर रखने और जरूरत पड़ने पर हस्तक्षेप का आदेश था
मुलाकात के दौरान:
- अफजल खान ने दोस्ताना आलिंगन का नाटक किया
- अचानक उसने छुपा हुआ खंजर निकालकर शिवाजी पर वार किया
- लेकिन शिवाजी का कवच उन्हें बचा गया
- तुरंत, शिवाजी ने वाघ नख से हमला कर खान की आंतें निकाल दीं
- सय्यद बांदा ने शिवाजी पर झपटने की कोशिश की, लेकिन जीवा महाले ने उसकी बांह काट दी
कुछ ही सेकंड में सब खत्म हो गया।
मराठों की विजय
अफजल खान के मारे जाने के तुरंत बाद, शिवाजी महाराज ने संकेत दिया और चारों ओर छिपे मराठा सैनिकों ने हमला कर दिया।
- संख्यात्मक रूप से कम होने के बावजूद, मराठों की रणनीति और आत्मबल ने विजय दिलाई
- अफजल खान की सेना को तितर-बितर कर दिया गया
- शिवाजी को भारी मात्रा में धन और अस्त्र-शस्त्र भी प्राप्त हुए
प्रतापगढ़ की लड़ाई क्यों थी ऐतिहासिक?
- यह शिवाजी महाराज की पहली बड़ी सैन्य विजय थी
- इसने यह साबित किया कि रणनीति और गुरिल्ला युद्ध कौशल से बड़ी से बड़ी सेना को हराया जा सकता है
- इस विजय ने मराठा साम्राज्य की नींव को मजबूत किया
साहस और रणनीति की विरासत
यह युद्ध सिर्फ एक युद्ध नहीं, बल्कि एक प्रेरणादायक गाथा है:
- पंताजी गोपीनाथ की कूटनीति
- जीवा महाले की वफादारी और सतर्कता
- और स्वयं शिवाजी महाराज की दूरदृष्टि और धैर्यपूर्ण नेतृत्व
इन तत्वों ने मिलकर एक असंभव सी लगने वाली लड़ाई को मराठों के लिए विजय में बदल दिया।
🚩 जय भवानी, जय शिवाजी!
हम सलाम करते हैं उन सच्चे नायकों को, जिनकी वीरता आज भी हमें प्रेरित करती है।
❓ अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
Q1: प्रतापगढ़ की लड़ाई भारतीय इतिहास में इतनी महत्वपूर्ण क्यों थी?
उत्तर: यह शिवाजी महाराज की पहली बड़ी जीत थी जिसने मराठा साम्राज्य की नींव रखी और यह सिद्ध किया कि रणनीति से बड़ी ताकत को भी हराया जा सकता है।
Q2: अफजल खान कौन था और उसे खतरनाक क्यों माना जाता था?
उत्तर: वह आदिलशाही का सेनापति और वाई का सूबेदार था। उसकी क्रूरता, विशाल कद और रणनीतिक ताकत के कारण वह भय का प्रतीक था।
Q3: जीवा महाले की भूमिका क्या थी?
उत्तर: शिवाजी के अंगरक्षक जीवा महाले ने सय्यद बांदा का हाथ काटकर शिवाजी की जान बचाई।
Q4: शिवाजी महाराज ने अफजल खान से मिलने की तैयारी कैसे की थी?
उत्तर: उन्होंने बुलेटप्रूफ कवच, धातु का हेड गार्ड और दो छिपे हथियार—वाघ नख और बिछुआ—पहने थे।
Q5: क्या यह विवरण इतिहास की किताबों में भी मिलता है?
उत्तर: अधिकतर पाठ्यपुस्तकों और विकिपीडिया पर इसकी संक्षिप्त जानकारी होती है, लेकिन यह लेख इस घटना की रणनीतिक गहराई, मनोवैज्ञानिक तैयारी और सांस्कृतिक प्रभाव को उजागर करता है।
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