लोहरी के गीत और नृत्य

लोहरी का त्यौहार भारत के उत्तरी क्षेत्रों, खासकर पंजाब और हरियाणा में, बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्यौहार न केवल कृषि और फसल कटाई का जश्न है, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर और परंपराओं का प्रतीक भी है। इस दिन गीत और नृत्य एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
गिद्धा और भांगड़ा का लोहरी में महत्व
भांगड़ा:
भांगड़ा, जोश और ऊर्जा से भरा एक पारंपरिक नृत्य है, जिसे आमतौर पर पुरुष करते हैं। यह नृत्य नई फसल की खुशी को व्यक्त करने का तरीका है। ढोल की थाप और भांगड़ा के ताल पर लोग मिलकर अपनी खुशी का इजहार करते हैं। भांगड़ा के दौरान लोहरी से जुड़े गीत गाए जाते हैं, जो त्योहार के महत्व को उजागर करते हैं।
गिद्धा:
गिद्धा महिलाओं द्वारा किया जाने वाला पारंपरिक नृत्य है। इसमें महिलाएं समूह बनाकर गीत गाते हुए तालियां बजाती हैं और नृत्य करती हैं। गिद्धा में लोकगीतों के माध्यम से प्रेम, हास्य और जीवन की कहानियों को पेश किया जाता है। लोहरी के दौरान गिद्धा नृत्य का आयोजन खासकर उत्सव के माहौल को और रंगीन बनाता है।
पारंपरिक गीत और उनकी कहानियाँ
लोहरी के गीतों में पंजाब की संस्कृति और इतिहास की झलक मिलती है। इन गीतों में त्योहार के महत्व, कृषि जीवन, और ऐतिहासिक पात्रों की कहानियाँ सुनाई जाती हैं।
सुंदर मुंदरिये: यह लोहरी का सबसे लोकप्रिय गीत है। इसमें एक लड़की ‘सुंदर-मुंदरिये’ और उसके साहसी भाई ‘दुल्ला भट्टी’ की कहानी सुनाई जाती है।
दुल्ला भट्टी एक ऐतिहासिक योद्धा थे, जो गरीब लड़कियों की मदद करते थे और उनकी शादी कराते थे। यह गीत उनके साहस और न्यायप्रियता की गाथा है। गीत के बोल कुछ इस प्रकार हैं: “सुंदर मुंदरिये, हो! तेरा कौन विचारा, हो! दुल्ला भट्टी वाला, हो!”
मूलाधारा के गीत: लोहरी के दौरान कृषि जीवन और फसल से जुड़े गीत गाए जाते हैं। इन गीतों में खेती, प्रकृति, और फसल की कटाई की खुशी को दर्शाया जाता है।
लोहरी पर कविता और शायरी
लोहरी का त्यौहार केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि परंपराओं, खुशियों और सामूहिकता का प्रतीक है। इस त्योहार की खूबसूरती को शब्दों में पिरोकर कविताएँ और शायरियाँ प्रस्तुत की जाती हैं, जो इसे और खास बना देती हैं।
लोहरी पर प्रेरणादायक कविता
“जल उठे हैं अलाव” जल उठे हैं अलाव, गीतों का संग है, हर्षित हर मन, खुशियों का रंग है।
गूंजती है ढोल की थाप, पांव थिरकते हैं, नई फसल की खुशबू में सपने महकते हैं।
रेवड़ी, मूंगफली, तिल-गुड़ का साथ, सर्द रात में बसी गर्माहट की बात।
लोहरी का त्योहार है प्रेम और उल्लास, संस्कृति का उत्सव, खुशियों का आभास।
शायरी
- रेवड़ी और मूंगफली, खुशियों के साथ, लोहरी की रातों में बसा एक एहसास। आग की लपटें, गीतों की मस्ती, हर दिल में समाए यह त्यौहार की बस्ती।
- ढोल की थाप पर थिरके दिलों के अरमान, लोहरी की रात है, सजी महफिल के सामान। तिल-गुड़ से रिश्तों में घुली मिठास, यह लोहरी का जश्न है, सदा रहे पास।
लोहरी के लिए लोकगीत आधारित कविता
“सुंदर मुंदरिये के बोल” सुंदर मुंदरिये की गूंज चारों ओर, दुल्ला भट्टी वाला है सबकी चितचोर। गुड़, तिल, रेवड़ी का अर्पण हर द्वार, लोहरी के संग झूमता हर त्योहार।
आग के घेरे में गूंजे गीत, फसल के संग हर मन का मीत। नया साल, नई आशा का संदेश, लोहरी की शुभकामनाएँ, सबके लिए विशेष।
त्योहार की खूबसूरती को दर्शाती कविता
“लोहरी की रात” ठंडी हवाओं में बसी है खुशबू, फसल कटाई की यह मधुर जश्नगू।
संगीत की लहरें, आल्हादित मन, हर घर में लोहरी का जलता चमन।
सांझ की रोशनी में सजी है फिजा, सपनों की माला में बंधा हर दिल जरा।
लोहरी की मस्ती, प्यार की बात, सदियों से जीवित है यह सौगात।
ये कविताएँ और शायरियाँ लोहरी के जश्न में नई ऊर्जा और उत्साह भर देंगी। इन्हें दोस्तों और परिवार के साथ साझा करके आप इस त्योहार को और खास बना सकते हैं।
लोहरी का समापन
लोहरी के दिन लोग आग के चारों ओर इकट्ठा होकर गीत गाते हैं और नृत्य करते हैं। इस आग में तिल, गुड़, मूंगफली, और रेवड़ी अर्पित की जाती है। यह समर्पण समृद्धि और सौभाग्य के लिए प्रार्थना का प्रतीक है।
लोहरी के गीत और नृत्य न केवल मनोरंजन का माध्यम हैं, बल्कि समाज की सामूहिक भावना और परंपराओं को भी जीवंत बनाए रखते हैं।